Dosti ka farz shayari
Farz shayari
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता !!
एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो !!
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो !!
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो !!
मीर तक़ी मीर !!
फर्ज था जो मेरा निभा दिया मैंने !!
उसने मांगा वह सब दे दिया मैंने !!
वो सुनके गैरों की बातें बेवफा हो गई !!
समझ के ख्वाब उसको आखिर भुला दिया मैंने !!
जब पांव में बाप की पगड़ी रख दी जाए !!
तो मोहब्बत से हाथ छुड़ाना पड़ता है !!
फिर चाहे कोई वेवफा कहें या बेरहम !!
कुछ ‘फर्ज’ हैं जिन्हें निभाना पड़ता हैं !!
मेरे सच्चे प्यार को !!
दिल का कर्ज़ समझा !!
बेवफाई करना तुमने !!
अपना फर्ज समझा !!
मोहब्बत में सिर्फ !!
हक तो नहीं मिलते !!
कुछ फर्ज़ भी तो !!
अदा करने होते हैं !!
Farz shayari
उतारा मैंने कर्ज था !!
क्यों होती हो उदास !!
ये तो मेरा फर्ज था !!
जिम्मेदारियों का ये जो फर्ज है !!
जीवन का सबसे बड़ा मर्ज़ है !!
मर्ज़ : रोग,व्याधि,व्यसन !!
ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया !!
अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था !!
तेरी बातें ही सुनाने आए !!
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए !!
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता !!
बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी !!
ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने !!
लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले !!
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